न मैं न कोई और...न ज्ञात न अज्ञात,
विरासत है, सोच है, द्रस्तिकोन है....
माटी का बना माटी मैं और फ़िर शेव्त साँस है॥
है लाल मगर वक्त की सुई और साल है शीश ख्वाब का,
है रक्त रणजीत जिस्म और शांत गीत मल्हार का....
न रोक सका कोई सोच को न आज रोक पायेगा,
रक्त तो बहेगा जो स्वप्न को बचायेगा...
देख आत्मन उड्ड चला न खौफ है न राख़ है,
दो हों या तीन हो हाथ,
एक hi मुँह की खायेगा....
चमक हो jo लाल्हात पे वो सूर्या को तपाएगा,
मौत से bhaybheet है कौन, कौन rah se jayega,
ran bhoomi main ek yoddha fir aaj apna sheesh navayega.....
moodi hawa, moodi tapish ki beech main kaun dekhen aayega,
brahm ke satya ke saamne aaj kaun bachayega...
Wednesday, August 5, 2009
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